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मुसाफ़िर बैठा की कवितायें :

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मुसाफ़िर बैठा : चर्चित दलित लेखक. एक काव्य संग्रह प्रकाशित. एक काव्य संग्रह , एक अनुवाद पुस्तक एवं एक आलोचना पुस्तक प्रकाशन की प्रक्रिया में है.बिहार विधान परिषद् के प्रकाशन विभाग में कार्यरत. ‘ मुसाफिर बैठा ’ बिलकुल अलग मिज़ाज के कवि है. वे चर्चित दलित लेखक हैं. ’ बीमार मानस का गेह ’ नामक उनका एक काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है. वे बिहार में दलित अस्मिता और बेबाकी से अपनी बात रखने वाले कबीरी परम्परा के एक मात्र कवि हैं. अभी हाल में ही उन्होंने ‘ बिहार-झारखण्ड : चुनिन्दा दलित कवितायें ’ नामक सग्रह के सम्पादन का कार्य करके अपनी मेधा का परिचय दिया है.  ना मर्द बनने का अभ्यास   आज पहली बार मैंने घर-भर के सारे काम किये चूल्हा चौका किया बर्तन-बासन मांजा खुद ही अपना खाना लगाया बीवी बच्चों का भी पत्तल सजाया झाड़ू पोंछा लगाया मर्द हाथों से बार बार अपने रुग्णदेह संगिनी के पाँव दबाया घर में मालिक होते हैं हम मर्द और , घर के काम की मालिक औरतें मजबूरन , घर को स्त्री-भर संभाला कुछ ना मर्द बनने का कुछ कुछ अभ्यास किया।

‘कविता कलाविहीन’ / आशाराम जागरथ / कर्मानंद आर्य

‘कविता कलाविहीन’ ............................................................................................................................................... डॉ. कर्मानंद आर्य ‘ कविता कलाविहीन’ अवधी के अरघान फेम ‘ पाही माफ़ी’ के उद्भावक आशाराम जागरथ का पहला कविता संग्रह है. एक बार फोन पर लम्बी चर्चा के दौरान उन्होंने बताया था कि अन्य दलित रचनाकारों की तरह वे भी अपने जीवन की दुसाध्य कठनाइयों से उबरने की पीड़ा को व्यक्त करने के लिए आत्मकथा लिखने का मन बना रहे थे और उसके कुछ पन्ने लिखने के बाद उन्हें यह अहसास हुआ कि उन्हें अपना सुख-दुःख गद्य में नहीं अपितु कविता में व्यक्त करना चाहिए. फिर उन्होंने जीवन की रागात्मकता को कविता में हथियार की तरह प्रयोग किया और वहीं से ‘कविता क्लाविहीन’ नामक इस संग्रह की संगठना हो पायी. सौन्दर्य के बने-बनाये प्रतिमानों पर प्रश्नों की बौछार तो अब तक होती रही है पर अपनी कविताओं को ‘कला विहीन’ कोई कबीर ही कह सकता है. कलाविहीनता का यह उदघोस ह्रदय के विशाल फलक को दर्शाता है वह भी तब जब हिंदी की लोकभाषा अवधी में ‘पाही माफ़ी’ के चार सौ छंदों में कवि ने ऐ